बस तिरस्कार के पात्र हो तुम।

सामाजिक , नई दिल्ली , मंगलवार , 21-11-2017


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रिमझिम श्रीवास्तव

हमेशा तिरस्कार और अपमान के हकदार हो तुम 

तुम्हें सम्मान का कोई हक नहीं 

सम्मान पाना है तो फिर से तुम्हें आग्नि परीक्षा देनी होगी। 

फिर कोई रावण तुम्हें आज छुएगा नहीं.... 

फिर भी तुम्हें अपने चरित्र की परिभाषा देनी होगी। 

अपने आप को कब तक परिचय में डूबाकर रखोगी। 

डूब डूब कर अब तो तुम अस्तित्व में जीवित नहीं। 

क्या कहें

क्या हो तुम? 

हर युग में बस तिरस्कार के पात्र हो तुम। 

कभी महाभारत हो तो वह तुम्हारे नाम पर..... 

कभी रामायण हो तो वह तुम्हारे नाम पर..... 

हर युग में दोष के पात्र हो तुम 

घृणा करू तुमसे या प्रेम 

समझ नहीं आता। 

हर युग में पात्र बनकर क्यो रह जाती हो? 

हे नारी।





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