क्या रिश्तों का खून करना इतना आसान भी हो सकता है?

सामाजिक , , शुक्रवार , 22-06-2018


relationandhumanbehaviour

कंचन यादव

क्या आज इंसानों के अंदर इंसानियत के साथ-साथ रिश्तों की भी कोई अहमियत नहीं है। हर रिश्ते को प्यार से जोड़ने वाला मानव आज दानव कैसे बन गया। आश्चर्य तो तब होता है, जब एक पिता ही अपने 6 साल के मासूम की गला दबाकर हत्या कर देता है।

'देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान', यहां दानव के भेष में छुपा बैठा है इंसान। अगर इन लाइनों को हम इस घटना के बाद याद करते हैं, तो गलत नहीं होगा। मामला रुड़की के मंगलौर कोतवाली के मोहल्ला लालबड़ा का है, जहां एक पिता ने अपने 6 साल के बच्चे की हत्या कर रिश्तों को कलंकित कर दिया। पिछले तीन दिनों से लापता 6 वर्षीय धैर्य का शव आज लिबरहेड़ी शुगर मिल के सामने गन्ने के खेत में मिला। 

रिश्तों के कत्ल की हमने बहुत सी खबरें पढ़ी थीं, लेकिन इस खबर ने तो अंदर तक हिला कर रख दिया। ये तो कुछ नहीं, लेकिन जब आपको पता चलेगा कि मासूम की हत्या किस वजह से की गई, तो आप कुछ समय के लिए ब्लैंक हो जाएंगे।  

इस वजह से मासूम को उतारा गया मौत के घाट

आपने अबतक सुना होगा कि मां-बाप अपने बच्चों के सपनों को पूरा करने के लिए अपने सपनों का त्याग कर देते हैं, लेकिन इस घटना में तो कुछ और ही देखने को मिला। यहां एक पिता ने अपनी शराबी लत के कारण बच्चे को हमेशा-हमेशा के लिए भगवान के पास भेज दिया। बताया जा रहा है कि आरोपी पिता मासूम के खर्चे को नहीं उठा पा रहा था।  

शराब की लत के कारण उसपर कर्ज बहुत बढ़ गया था, जिसके चलते वह फ्रस्टेट हो गया था और बच्चे की गला घोंटकर हत्या कर दी। उसने सिर्फ एक मासूम की हत्या नहीं की है, बल्कि पिता-पुत्र के रिश्तों को भी कलंकित कर दिया है। 

कैसे कोई इतना पत्थर दिल हो सकता है

ताज्जुब की बात तो ये है कि कोई कैसे अपने मासूम की इतनी निर्मम तरह से हत्या कर सकता है। कैसे कोई अपनी एक लत के चलते एक बच्चे की जान ले सकता है। क्या आज के समय में इंसानियत के साथ-साथ रिश्तों की भी कोई वेल्यू नहीं है, हर कोई पत्थर दिल हो चुका है।

हालाकिं, आरोपी पिता के घर की क्या हालत थी, उसका अभी तक कोई खुलासा नहीं हो पाया है, वजह चाहें जो भी हो, इस तरह का कदम तो कभी भी और किसी को भी नहीं उठाना चाहिए। 

आधुनिकता के दौर ने भुला दिया सबकुछ

वहीं, अगर हम इस आधुनिकता वाले युग की बात छोड़कर पुराने समय की बात करें तो उस जमाने में लोगों के पास भले ही पैसा न होता हो, लेकिन उनके अंदर मानवता होती थी और वह लोग दिल से अमीर होते थे। रिश्तों को निभाना भी उन्हें बखूबी आता था। 

मगर, दुर्भाग्य की बात तो ये है कि आज के लोग तो रिश्तों की परिभाषा ही भूल बैठे हैं, हर कोई अपने स्वार्थ के लिए जी रहा है। समाज की परवाह छोड़ सब अपनी ही धुन में जिंदगी के मजे लेते जा रहे हैं।





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