संत शिरोमणि रविदास और अंबेडकरवाद में से किसी एक को चुनना होगा- शांत प्रकाश जाटव

सामाजिक , नई दिल्ली , शुक्रवार , 11-01-2019


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संवाददाता

नई दिल्ली. 14 दिसंबर. अंबेडकरवाद के नाम पर तथाकथित दलित लीडरशिप अनुसूचित जाति वर्ग के युवाओं और समाज को गुमराह कर रही है. अनुसूचित जाति समाज और युवाओं को चाहिए कि वह अपने इतिहास को पढ़ें और अपने पूर्वजों के दिखाए मार्ग पर आगे बढ़ें ना कि तथाकथित दलित लीडरशिप के बहकावे में आकर अंबेडकरवाद में उलझें. उक्त उद्गार व्यक्त करते हुए भाजपा नेता शांत प्रकाश जाटव ने कहा कि अनुसूचित जाति वर्ग को तथाकथित दलित लीडरशिप की फैलाई भ्रांतियों से बचना होगा, जो उन्हें सिर्फ अछूत, नीच और दलित घोषित करती हैं. भाजपा नेता ने कहा कि आज जिस तरह से अंबेडकरवाद के अनुयायी हिंदू धर्म पर हमलावर हैं, वह उनके समाज को विभाजित करने के एजेंडे को दिखाता है. शांत प्रकाश ने कहा कि अनुसूचित जाति समाज को तय करना होगा कि वह वैदिक धर्म के पुरोधाओं में से एक संत शिरोमणि गुरू रविदास के मार्ग पर चलना चाहता है या फिर वैदिक धर्म को गालियां देने वाले नास्तिक अंबेडकरवाद के रास्ते पर! भाजपा नेता ने कहा कि संत शिरोमणि रविदास और अंबेडकरवाद दो अलग-अलग रास्ते हैं. संत शिरोमणि रविदास का दिखाया मार्ग जहां धर्मसम्मत आचरण के साथ अपनी आन-बान के लिए मर-मिटने  का जज्बा सिखाता है, वहीं अंबेडकरवाद नास्तिकता का ऐसा धतूरा है, जिसके नशे में समाज के युवा सिर्फ गुमराह हो सकते हैं. जाटव ने कहा कि हमारे समाज के युवाओं को यह मालूम होना चाहिए कि वैदिक धर्म की रक्षा के लिए जहां संत रविदास समरसता के वाहक बनकर खड़े हो गए और तमाम वर्णों में होते धर्मान्तरण को रोक दिया था, वहीं डॉ. अंबेडकर तो खुद ही धर्मातंरित हो गए थे. 

जाटव ने कहा कि अंबेडकरवाद के नाम पर दिन-रात जातीय विष बेल बोने वाले डॉ. अंबेडकर के अनुयायियों को सामाजिक समरसता का ज्ञान संत शिरोमणि रविदास से लेना चाहिए. जो महाराणा परिवार की महारानी मीरा के गुरू बने. जब मीरा चित्तौड़ से चलकर काशी पहुँची और स्वामी रामानंद से उनका गुरू बनने का निवेदन किया तो स्वामी जी ने अपने शिष्य संत रविदास की ओर इशारा करते हुए मीरा से कहा कि तुम्हारे योग्य गुरु तो संत रविदास ही हैं. महारानी मीरा तुरंत ही संत रविदास की शिष्या बन गर्इं और वे महारानी मीरा से कृष्णा भक्त मीराबायी हो गर्इं, इससे बड़ा सामाजिक समरसता का उदाहरण दुनिया भर में कहां मिल सकता है? 

भाजपा नेता ने डॉ. अंबेडकर दीक्षा स्थली पर लगे 22 हिंदू विरोधी प्रतिज्ञाओं के शिलापट्ट को भी सामाजिक समरसता के लिए घातक बताते हुए कहा कि यह हिंदू विरोधी 22 प्रतिज्ञाओं का शिलापट्ट झूठे अंबेडकरवाद की पोल खोलने के लिए काफी है, जो दिन-रात अपने साथ होने वाले भेदभाव की दुहाई देता रहता है. जाटव ने कहा कि यह हिंदू समाज की सहनशीलता है, जो वह ऐसे भावनाएं आहत करने वाली प्रतिज्ञाओं के शिलापट्ट को बर्दाश्त कर रहा है. जाटव ने कहा कि यह हर उस संत रविदास के अनुयायी  के लिए सोचने की बात है, कि एक ओर जहां इस्लामी चरमपंथ के खिलाफ संत रविदास तमाम यातनायें सहने के बाद भी अपने वैदिक धर्म पर अडिग रहे और अपने अनुयायियों को विधर्मी होने से बचा लिया. रैदास रामायण में वर्णन आता है- 

वेद धर्म सबसे बड़ा अनुपम सच्चा ज्ञान, 

फिर मै क्यों छोडू इसे पढ़ लूँ झूठ कुरान. 

वेद धर्म छोडू नहीं कोशिश करो हजार, 

तिल-तिल काटो चाहि, गोदो अंग कटार

वहीं दूसरी तरफ धर्मातंरित होने के बाद भी संत शिरोमणि रविदास के उसी वैदिक धर्म पर ओछी टीका-टिप्पणी करता अंबेडकरवाद मानो आज संत शिरोमणि रविदास का अपमान करता प्रतीत होता है. भाजपा  नेता ने कहा कि अनुसूचित जाति वर्ग के युवाओं को संत रविदास के बताए मार्ग या नास्तिक अंबेडकरवाद में से किसी एक को चुनना होगा.  शांत प्रकाश ने कहा कि अनुसूचित जाति के युवाओं को फैसला करना होगा कि वह एक समतामूलक समाज की स्थापना के लिए सामाजिक समरसता का रविदासी मार्ग चुनना चाहते हैं, या फिर अंबेडकरवाद के झंडे तले झूठे जातीय विभाजन का जहर फैलाकर हमेशा खुद को नीच और अछूत बनाए रखने वाला समाज चाहते हैं. भाजपा नेता ने कहा कि इन दोनों रास्तों का फर्क यह है, कि संत शिरोमणि रविदास द्वारा फैलाई वैदिक धर्म पताका के झंडे तले खड़े होकर कुछ सौ साल बाद भी चमार रेजीमेंट के रणबांकुरों ने जहां देशहित में अपनी जान की बाजी लगाकर अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड दिया था, वहीं अंबेडकरवाद के नास्तिक अलंबरदार महारों ने अंग्रेजों के साथ मिलकर भारत देश के खिलाफ ही युद्ध छेड़ दिया था. शांत प्रकाश ने कहा कि आज समाज के युवाओं को विचार करना होगा कि वह  इन तथाकथित दलित नेताओं के अंबेडकरवाद के पीछे चलकर दलित, नीच, अछूत बनना चाहता है या फिर अपने समाज का सच्चा इतिहास सामने लाकर छुआछूत को समूल नष्ट करना चाहता है। सिर्फ संत शिरोमणि रविदास के मार्ग पर चलकर ही इसे समूल नष्ट किया जा सकता है, अंबेडकरवाद इसका समाधान नहीं है, अंबेडकरवाद तो इस विभीषिका को और बढ़ा ही सकता है.





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