इतिहास , नई दिल्ली , शुक्रवार , 01-12-2017
रिमझिम श्रीवास्तव
मृत्यु के समीप का वह पल.. वह जीवित प्राणी क्या सोचता होगा। क्या यह जीवन सच में काल्पनिक है,या फिर वास्तविकता मात्र मृत्यु है। मन के अंतिम विचार क्या होते होंगे...ऐसा माना जाता है कि मानव शरीर नश्वर है,जिसने जन्म लिया है उसे एक ना एक दिन अपने प्राण त्यागने ही पड़ते हैं. भले ही मनुष्य या कोई अन्य जीवित प्राणी सौ वर्ष या उससे भी अधिक क्यों ना जी ले लेकिन अंत में उसे अपना शरीर छोड़कर वापस परमात्मा की शरण में जाना ही होता है...आत्मा और परमात्मा के बीच ये जो जीवन की डोर हैं। वास्तव में यह जीवन है क्या आगणित चिंताओ का घर। या एक सुखद अनुभूति। समझ नहीं आता परन्तु मृत्यु का भय प्रत्येक व्यक्ति के अंदर होता है। जब कभी हम किसी पशु पक्षी को मरते हुये देखते हैं परंतु उसकी पीड़ा की अनुभूति हमें नहीं होती।पर क्या वहां कैद पशु पक्षियों को 'उसके उस पीड़ा को महसूस करते होंगे। उनके मन में पहला विचार क्या आता होगा। हम भी मरने वाले हैं।या फिर वह मृत्यु के भय से कोसों दूर है क्या उन्हें जीवन से कोई मोह नहीं। या फिर वह मृत्यु से परिचित हैं।वह मृत्यु को हर पल जी रहे हैं जीवन रूप में।या फिर उनके लिए मृत्यु शब्द मात्र है।अगर ऐसा है तो वह मनुष्य से बेहतर है जो आज मे जीते हैं। मोह माया से दूर तथा मृत्यु से कोसों दूर।