रामलीला कीजिए मगर भैया?

सामाजिक , नई दिल्ली , शनिवार , 25-11-2017


akshaysingh

अक्षय सिंह राजपूत

फिल्में वालों आप को कहूँ भी तो क्या कहूँ ...

ना कहूँ तो दर्द भी बहुत होगा।


फिल्म में कमर दिखाना ठुमके लगाना,लिप किस,रोमांस और सेक्स ये आपके लिए मनोरँजन की बात है आप कीजिए भी और दिखाइये भी कोई मना नहीं है। 


राम चाहे लीला चाहे 

लीला चाहे राम दोनों के लव में दुनियाँ का क्या काम।


रामलीला कीजिए मगर भैया आपने कहाँ पढ़ा या देखा की राम लिला में कमर मटका कर रिझाये गये थे। जिस तरह आप स्वप्न में ऐसे ठुमके और वाहियात सीन दिखाने की बात करते हैं  क्या उसी स्वप्न में तुलसीदास जी ने आपके कान में कुछ कहा क्या जिसे शायद तुलसीदास जी भी  रामायण में दर्ज करना भूल गये ।


फिक्शन और क्रियेटिविटी से फिल्म के थाल को सजाने का तरीका वर्तमान और भविष्य के साथ तो ठीक है मगर इतिहास में कैसी क्रियेटिविटी कैसा फिक्शन ?

ये तो बाज़ार में अपने प्रॉडक्ट को बेचने की कला भर है ।


एक ऐसी पवित्र महिला महारानी     पद्मावती जिसने अपनी रक्षा और खुद के स्वाभिमान को बचाने के लिए मौत के आसान तरीके नहीं बल्कि हवन कुंड में सोलह हजार रानियों के साथ खुद के शरीर को राख कर दिया। ताकि उस छलिया,गद्दार खिलजी और उसके सैनिकों की नज़र उनके मृत शरीर पर भी ना पड़े। एक ऐसी महिला जिन्हें 700 वर्ष बाद भारत आज भी याद कर रही है। उनके ऊपर कल्पनिक तरीक़े से फिल्म परोसना ये कौन सी कारीगीरी है।


चन्देरी की रानी मणिमाला और रायसेन की रानी दुर्गावती           जैसी कई रानियों की महारानी पद्मावती मिसाल रहीं हैं इन रानियों ने भी अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए सुलतान या बादशाह के हरम में जाना नहीं बल्कि महारानी पद्मावती के तरह ही राज्य के सारे मंत्रियों और रिश्तेदारों के पत्नियों के साथ भभकते ज्वाला में खुद का समर्पण कर दिया ।


स्त्रियों को सिर्फ हवस का इस्तमाल मानने वाला विदेशी आक्रांता अय्याश अलाउद्दीन खिलजी 7सौ साल बाद भंसाली के स्वप्न में कुछ ऐसी बातें कह गये हैं जो भारत के इतिहास में दर्ज नहीं है। भंसाली अब इसे फिल्म के द्वारा दिखाना चाहते हैं ।

25 अगस्त 1303 ई. की भयावह काली रात मेवाड़ के राणा रतन सिंह की धर्मपत्नी रानी पद्मावती अपनी सखियों के साथ अग्नि स्नान के लिए उस ज्वालामुखी की ओर बढ़ रही थी इसमें कुछ औरतें ऐसी थी जिसके गोद में नवजात शिशु थे। ऐसी तस्वीर सोचने भर से ही रूह काँप जाती है। दूसरी ओर मेवाड़ के वो चंद क्षत्रिय योद्धा, खिलजी के हजारों सेनाओं से रण में जय महादेव के जयकारे से अंतिम क्षण तक लड़ते रहे थे ।


श्यामनारायण पांडेय की प्रसिध्द पुस्तक जौहर की पंक्ति याद आती है 


बोल उठा उन्मांदी फ़िर 

मुझको थोड़ा सा पानी दो 

कहाँ पद्मानी ,कहाँ पद्मानी 

मुझे पद्मानी रानी दो ...


इतिहास को दिखाने का दावा करने वाले संजय भंसाली इतिहास से परिचित हैं या अपरिचित इस बात का पैमाना लगाना व्यर्थ है, क्योंकि ऐसे फिल्मकार कूछ उलट -पलट दिखाकर ,खूब सारी सुर्ख़ियां बटोरकर मोटी रकम कमाना जानते हैं ।


क्षत्रिय कायरता से नहीं बल्कि निडरता और जंग में हमेशा अरे रहने की वज़ह से भारतीय इतिहास में नाम दायर किया है । चाहे वो दौड़ विदेशी आक्रांताओं का रहा हो या फ़िर अंग्रेजों का या आज सरहद पार के दुश्मनों का । ये बात कतई कहना सही नहीं होगा की अन्य जातियों ने इनका साथ नहीं दिया ।


कवि रामधारी सिंह दिनकर ने कहा था जब तक सिनेमा है तबतक समाज बिगड़ता रहेगा । लेकिन मैं कहता हूँ जबतक सिनेमा है तबतक हमारे देश के इतिहास के साथ छेड़ -छाड़ होता रहेगा। आज संजय लीला भंसाली कल कोई और ...


सवाल यह भी उठाये जा रहे हैं की फिल्म के रिलीज के बगैर यह विरोद्ध कैसा? अगर फिल्म रिलीज हो जाए और ये कयास सही हो तो इसकी जिम्मेवारी कौन लेगा? वो पत्रकार या फिल्म जगत के वो चेहरे जो इस फिल्म के साथ खड़े होकर अपने आप को बुद्धिजीवी वर्ग और औरों को मुर्ख बताने के लिए दिन -रात अखबार,टेलीविजन और सोशल साईटों पर लगे हुए हैं ।


इतिहास दिखानी हो इतिहास पर फिल्म बनानी हो तो सच्चाई रखी जाय काल्पनिक नहीं। हाँ ये बात  है की सच्चाई दिखाने की ना आज के फ़िल्मकारों में हिम्मत है और ना ही उसमें टी. आर. पी है ।

आज इस फिल्म के रीलिज को रोकने और इसके विरोद्ध में अगर आवाज़ उठ भी रही है तो इसमें गलत क्या है ? हमारा आने वाला कल क्या हमसे नहीं पूछे गा जब देश के इतिहास के साथ कोई नौट कमाने भर के लिए खिलवाड़ कर रहा था तब आप देशवासी क्या कर रहे थे और हम उसे जवाब देंगे भी तो क्या देंगे ।





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