सामाजिक , नई दिल्ली , मंगलवार , 21-11-2017
रिमझिम श्रीवास्तव
लोगों के तिरस्कार ओर अपमान को भूलकर जिंदगी जीऊगी मैं
हाँ मैं जिंदा हुं।
तुम जब जब मारोगे
तब तब एक नया जीवन जीऊगी मैं।
तुम मारो मैं फिर से वही जिंदगी जीऊगी
घुट कर नहीं सम्मान से।
तुम क्या जीवन का मोल समझोगे
तुम तो स्त्री को तिरस्कार करने में अपना सम्मान समझते हो।
जब जब रेप हुआ है
तुम दोषी हो....
पर अंगुली स्त्री पर उठती हैं
क्यो?
क्या हम स्वाभिमान के हकदार नहीं।
या डरते हो अपना असली चेहरा दिखाने को
कब तक रेप का सहारा लोगे?
कब तक आपने आप को सही साबित करोगे।
तुम चंद आदमियों की वजह से यह दुनियाँ बदनाम हैं।
अब तो सम्भाल जाऊं...
अब डरने के भाव नहीं है हममें।
क्योकि मैं जिंदा हुं।
अपने हर तिरस्कार का बदला लेने के लिए।
मुहं से नहीं कलम से!!