सामाजिक , नई दिल्ली , बुधवार , 08-11-2017
सारिका सिंह
Sarika Singh : रात के वक्त कौन न्युज देखता है ,क्यूंकि मनोरंजन के कार्यक्रमों की बाढ से निकल पाना मुश्किल होता है मगर उस रोज स्पेशल एनाउंसमेन्ट होने वाला था सो हमने भी टी० वी० पर अपने प्रधानमंत्री को सुनने को ट्यून किया देर रात की ट्रेन थी सो निकलने की भी तैयारी थी वाराणसी का कूच था , मगर ये क्या कह रहे है मोदी जी , ऐसा कोई करता है क्या अचानक से हुए इस नोटबन्दी के फैसले से तो मैं फिसल पडी !
ये एक ऐतिहासिक घडी थी जिसमें हर देशवासी कैसा महसूस कर रहा था मालूम नहीं मगर मैं बहुत विचलित थी समझ नहीं आ रहा था कि हँसू की रोउँ!
इकोनॉमिक्स की student हूँ तो ये मालूम था कि बडे बदलाव के मुहाने पर देश आ गया मगर दिपावली के बाद अचानक से ये थमाका कोनों में शोर बढा रहा था कि अब क्या होगा यात्रा करनी है और पास में अब बेकार हो चुका नोट पाँच सौ का मुँह चिढा रहा था ,खैर टिकट हो चुका था सो लाजमी था कि अब निकला जाए जो होगा वो होगा , अपनी नियत सीट पर आते ही सोच के घोडे जोड तोड में लगे कि ब्लैकमनी तो सफेद हो जाएगी मगर मुझ जैसे जिनके पास ब्लैकमनी नहीं रोज कार्ड swap से पैसे मिलते हैं उनके लिए क्या, ये सवाल वैसा ही था जैसे चलती ट्रेन से टी टी उतार दे ये कह कर कि टिकट तो valid नहीं । सवालों के घेरे में मैं अभिमन्यु की तरह महसूस कर रही थी ,पास के सहयात्री के मोबाइल में गीत के स्वर इतने सटीक जान पड रहे थे , सोचा ना हाय रे ,समझा ना हाय रे रख दी निशाने पर जान, बत्तियों के जलते रहने पर भी अंधकार ही अंधकार लग रहा ,,वो रात जैसे सदियों से लंबी थी ,,आज जब इसके कुछ परिणाम देश हित में देख रही हूं तो वो रात उतनी बूरी नहीं लगती । इस डर के साथ हर देशवासी का मन खुश है कि रेडियो पर मन की बात की तरह ये भी कामयाब रहा । परिर्वतन संसार का नियम है, अगले परिर्वतन के लिए क्या हम तैयार हैं मित्रों!!