खबर , नई दिल्ली , शनिवार , 10-11-2018
सारिका पंकज
आधुनिक देशों में अपना एक स्वतंत्र मुख्य “ राष्ट्रीय बैंक” रहता है। जैसे कि “ बैंक ऑफ इंगलंड”( यूके), फेडरल बैंक ऑफ अटलांटा ( अमरीका) इत्यादि। भारत में वह राष्ट्रीय मुख्य बैंक है रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया( आरबीआई)।
आरबीआई देश की आर्थिक ब्याबस्था को नियंत्रण करने में सरकार की मदद करता है। इसकी नामकरण में ही इसका लक्ष्य छिपा है। रिज़र्व शब्द का अर्थ है “ कुछ जमा करके सुरक्षित रखना”। भारत में आरबीआई भी नोट क्या, कब और कितना छापना होगा उसपर नियंत्रण करता है। ध्यान से देखिएगा कोई भी भारतीय नोट को :
देखिए मार्क किया गया स्थान पर आरबीआई गवर्नर का दस्तख़त है। और उसमे यह उचित रुपया होने का एक रिजॉल्यूशन भी है। एक नोट की बैधता जानने में यह एक अहम हिस्सा है।
इसके बाद आरबीआई के कर्याबली में देश के सारे सरकारी, गैरसरकारी, व्यावसायिक, कृषिभित्तिक, सहॉयोगी तथा ग्रामीण बैंकों को नियंत्रण करना, आर्थिक देन में रेपो रेट को स्थिर करना, आर्थिक योजनाओं केलिए उधार देना, देश में दरदाम नियंत्रण रखने केलिए उचित आर्थिक ब्याबस्था तथा नियम अपना ना आदि आता है। इसीलिए आरबीआई को “ बैंकों का बैंक” कहा जाता है।
अब प्रश्न उठता है क्या आरबीआई सम्पूर्ण स्वाधीन है या फिर केंद्र सरकार के अधीन?
आरबीआई एक नियामक संस्था( रेगुलेटरी बॉडी) है जो केंद्र सरकार का ही एक बिभाग है। लेकिन उन्हें स्वाधीन रूप से कार्य करने का हक है जबतक देश का हित साधित हो। यहां ध्यान दीजिएगा यह “ जब तक देश हित” को कोई किसिभी अर्थ पर ले सकता है। आम तौर पर हमें पता है कि आरबीआई हो या सीबीआई सब केंद्र सरकार के अनुसार कार्य करते हैं। लेकिन जब कोई पदक्षेप देश हित से उठकर निजी हित पर आजाता है तब प्रतिरोध का स्वर उठता है। यही हुआ था पहले गवर्नर श्री रघुराम राजन जी के समय, और यही हो रहा है आरबीआई के अभी के गवर्नर श्री उर्जित पटेल जी का दौरान भी।
उदाहरण -
केंद्र सरकार चाह रहा है कुछ आर्थिक बदलाव जैसे रेपो रेट में कमी। लेकिन आरबीआई का कहना है कि ऐसा करने से देश में आगे चलकर मुद्रास्फीति छे प्रतिशत से ज्यादा होजाएगा जो कि देश की अर्थनीति केलिए अच्छा नहीं है। इस बात को लेकर केंद्र और आरबीआई में खींचातानी चल रही है।